शुक्रवार, 27 मई 2011



आग के अंगारों सी,



दहक रही है धरा ,



धौकता कौन है कि



दहक रही है धरा



काटते वृक्ष को,



खोदते धरती को,



तोडते पहाड़ों को ,



वाहन के धुंए से ,



विकास के कचरे से ,



बदती जहरीली हवाओं से ,



दहक रही है धरा



एक कर्णधार चाहिए ,



एक दृढ़ विचार चाहिए ,



एक अमल कि राह चाहिए ,



कि " मौन " दहके धरा



मनोज मौन







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें