आग के अंगारों सी,
दहक रही है धरा ,
धौकता कौन है कि
दहक रही है धरा ।
काटते वृक्ष को,
खोदते धरती को,
तोडते पहाड़ों को ,
वाहन के धुंए से ,
विकास के कचरे से ,
बदती जहरीली हवाओं से ,
दहक रही है धरा ।
एक कर्णधार चाहिए ,
एक दृढ़ विचार चाहिए ,
एक अमल कि राह चाहिए ,
कि " मौन " न दहके धरा ।
मनोज मौन
